खजाने की खोज रहस्यमयी कहानी | Khajane ki Kahani : ग्वालियर किले में छुपे खजाने की ये कहानी अद्भुत रहस्य, रोमांच से भरपूर है। ये कहानी बिल्कुल सच्ची है और इसके सबूत भी कहानी के अंत में दिए गए हैं। आम जनता को पहली बार सिंधिया वंश के इस खजाने की कहानी व रहस्य का पता तब चला जब M.M. Kaye की किताब The Far Pavilions प्रकाशित हुई। इस बुक के लेखक M. M. Kaye के पिता Cecil Kaye महाराजा सर माधवराव सिंधिया के खास दोस्त थे और यह सच्ची कहानी खुद सर माधवराव सिंधिया ने उन्हें बताई थी।
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गंगाजली के छुपे खजाने की खोज कैसे हुई, क्या मिला | Khajane ki Khoj Hidden Treasure Story
बात 17-18वीं शताब्दी की है, जब सिंधिया राजवंश अपने शीर्ष पर था और ग्वालियर के किले से लगभग पूरे उत्तर भारत पर शासन कर रहा था। ग्वालियर का किला सिंधिया राजपरिवार के खजाने, हथियार व गोले-बारूद रखने का स्थान था। कई पीढ़ियों से ग्वालियर किले में खजाने का कुछ हिस्सा जमीन के नीचे बने गुप्त तहखानो में रखा जाता था जिसका पता सिर्फ राजदरबार के कुछ खास लोगों को था। यह रहस्यमयी खज़ाना गंगाजली के नाम से जाना जाता था।
गंगाजली का खजाना रखने का मुख्य उद्देश्य युद्ध, अकाल और संकट के समय में उपयोग करने के लिए था। सिंधिया राजघराना एक सफल, समृद्ध राजवंश था और उसके खजाने में निरंतर वृद्धि होती रही। जब खजाने से कोई तहखाना भर जाता तो उसे बंद करके एक खास कूट-शब्द (कोड वर्ड) से सील कर दिया जाता और नए बने तहखाने में खजाने का संग्रह किया जाता। यह खास कूट-शब्द जिसे बीजक कहा जाता था, सिर्फ महाराजा को मालूम होता था।
यह बीजक यानि कोड वर्ड महाराजा अपने उत्तराधिकारी को बताया करते थे। सिंधिया परिवार में यही परम्परा चली आ रही थी। ग्वालियर किले में ऐसे कई गुप्त तहखाने थे, जिन्हें बड़ी ही चालाकी से बनाया गया था और बिना बीजक के इन्हें खोजना और खोलना असंभव था।
सन 1843 में सर माधवराव के पिता जयाजीराव सिंधिया महाराजा बने जिससे तहखानो और बीजक का उत्तराधिकार भी उन्हें मिला। सन 1857 में कुछ समय के लिए किले पर विद्रोहियों ने कब्ज़ा कर लिया जिसे बाद में अंग्रेजो ने अपने कब्ज़े में ले लिया। महाराज जयाजीराव अपने खजाने के प्रति निश्चिंत थे क्योकि वो जानते थे, खजाने को खोज पाना विद्रोहियों के लिए असंभव था। यही हुआ भी, लाख प्रयासों के बावजूद उन्हें खजाने का नामोनिशान नहीं मिला।
जब किले का अधिकार अंग्रजों को मिला तो ‘जीवाजीराव’ को बड़ी चिंता हुई कि संभवतः अँगरेज़ कहीं खजाने तक न पहुँच जाएँ। सन 1886 में जब अंग्रजों ने किले का अधिकार पुनः सिंधिया परिवार को सौंप दिया और महाराज जयाजीराव ने चैन की साँस ली।
महाराज जयाजीराव ने किले में पहुंचते ही पहला काम ये किया कि बनारस से मिस्त्रियों को बुलाया। उन मिस्त्रियों को चलने से पहले गौ माता की सौगंध दी गयी और आँखों पर पट्टी बांध कर ट्रेन में बिठाकर ग्वालियर लाया गया। आँखों पर पट्टी बांधे हुए ही उन्हें किले के अन्दर ले जाया गया।
इन मिस्त्रियों को तब तक किले में रखा गया जब तक कि इन्होने गुप्त खजाने का द्वार खोद कर निकाला। जब महाराज ने देखा और सुनिश्चित किया कि खज़ाना सुरक्षित था तो पुनः उस प्रवेशद्वार को बंद कर दिया गया। मिस्त्रियों को जिस प्रकार लाया गया था पुनः उसी तरह सुरक्षापूर्वक बनारस पहुंचा दिया गया।
दुर्भाग्य से उस घटना के कुछ समय बाद ही राजा जयाजी राव सिंधिया का निधन हो गया और चूंकि सर माधवराव उस समय बच्चे ही थे, वह बीजक पाने में असफल रहे। इस घटना से राजदरबार में खलबली सी मच गयी। सिंधिया राजघराने का खज़ाना बिना बीजक सूत्र के अदृश्य समान हो गया और कोई कुछ कर भी नहीं सकता था।
इस दुविधा को देखते हुए ग्वालियर में रहने वाले एक ब्रिटिश कर्नल बैनरमैन ने खजाना खोजने में राजपरिवार की मदद करने की पेशकश की। राजदरबार ने कर्नल को अनुमति दे दी। कर्नल पूरे जी-जान से किले की छानबीन में लग गए। बड़ी मेहनत और प्रयासों के बाद कर्नल एक तहखाना खोजने में सफल हुए। जब खज़ाने का द्वार खुला तो सबके होश उड़ गये।
कर्नल बैनरमैन के शब्दों में यह खजाना, अलीबाबा के खजाने की कल्पना को हकीकत में देखने जैसा था।
खजाने में 6 करोड़ 20 लाख सोने के सिक्के निकले, लाखों चाँदी के सिक्के, हजारों की संख्या में बेशकीमती, दुर्लभ रत्न, मोती, हीरे-जवाहरात निकले. यह तहखाना तो उन कई तहखानों में से केवल एक ही था.
ग्वालियर किले में ऐसे कई और तहखाने थे जहाँ गंगाजली खज़ाना छुपा हुआ था। इस खजाने के मिलने के बाद कुछ वर्षों तक खजाने की खोज रोक दी गयी। जब माधवराव बड़े हुए तो उनका राजतिलक हुआ और सिंधिया राजवंश का उत्तराधिकार उन्हें मिला। उन्होंने अन्य तहखानो की खोज पुनः शुरु की. सर माधवराव के बहुत प्रयत्नों की बावजूद भी खजाने का पता नहीं चल पाया।
एक दिन राजा माधवराव शिकार खेलने के लिए जा रहे थे। तभी वहां एक वृद्ध ज्योतिषी आया और उसने माधवराव के कान में बोला कि वह खजाने का पता जानता है। ज्योतिषी ने कहा वो राजा को खजाने तक ले जायेगा, पर उसकी शर्त ये थी कि राजा को अकेले उसके साथ आना होगा। माधवराव ने थोड़ा सोच-विचार के बाद हाँ आकर दी।
तब ज्योतिषी ने राजा के सामने एक और शर्त रखी कि राजा माधवराव को निहत्थे आना होगा और ज्योतिषी उनकी आंख पर पट्टी बांध कर उन्हें खजाने तक ले जायेगा। माधवराव यह शर्त भी मानने को तैयार हो गए पर एहतियात के तौर पर एक हथियार अपने कपड़ों में छिपा लिया।
किसी अनिष्ट की आशंका से बचने लिए किले के सारे दरवाज़े अंदर से बंद करवा दिए गये और किले के भूमिगत तलों से खजाना खोजकर वापस आने तक किसी भी बाहरी व्यक्ति का किले में प्रवेश वर्जित कर दिया।
ज्योतिषी राजा माधवराव को किले के अन्दर कई गुप्त रास्तों से ले जाते हुए आखिरकार खजाने तक पहुंचा दिया। तहखाने के भीतर जाते हुए राजा माधवराव को ऐसा लगा कि कोई तीसरा व्यक्ति भी उनके साथ-साथ पीछे चल रहा है। जान का खतरा समझ कर उन्होंने अपना हथियार निकाला और ताकत से प्रहार कर दिया। यह सब कुछ सेकंडो में हो गया।
माधवराव को बस इतना आभास हुआ कि दिया गिरा, लौ बुझ गयी और उनके प्रहार से किसी इंसानी खोपड़ी के चटकने के आवाज़ आई। बदहवास माधवराव तेजी से बाहर भागे। जो भी रास्ता उन्हें सही लगा पकड़ते हुए, भागते हुए माधवराव उस जगह पहुंचे जहाँ उनके विश्वस्त लोग और सैनिक बेचैनी से उनका इंतजार कर रहे थे।
बाहर आने के थोड़ी देर बाद, जब माधवराव इस दहशत से कुछ उबरे तो उन्हें ऐसा विचार आया कि संभवतः उन्होंने अपने क़दमों की प्रतिध्वनि ही सुनी थी और असल में उनके पीछे कोई भी नहीं था। साथ ही साथ गलती में उन्होंने उस वृद्ध ज्योतिषी पर ही हथियार चला दिया था।
राजा माधवराव को विश्वास था कि वो पुनः उस खजाने तक पहुँच सकते हैं, परन्तु उनका यह विश्वास गलत सिद्ध हुआ और अगले कई सालों तक किले को छान मारने के बावजूद माधवराव उस तहखाने तक वापस नहीं पहुँच पाए। अपनी असफलता से निराश होकर माधवराव ने खजाने की खोज बंद कर दी। परन्तु माधवराव के भाग्य का सितारा अभी चमकने वाला था।
एक दिन माधवराव अपने किले के एक पुराने गलियारे से गुज़र रहे थे। इस रास्ते की तरफ कोई आता जाता नहीं था। उस रास्ते से गुज़रते हुए अचानक माधवराव का पैर फिसला, सँभलने के लिए उन्होंने पास के एक खम्भे को पकड़ा। आश्चर्यजनक रूप से वह खम्भा एक तरफ झुक गया और एक गुप्त छुपे हुए तहखाने का दरवाज़ा खुल गया। माधवराव ने अपने सिपाहियों को बुलाया और तहखाने की छानबीन की।
उस तहखाने से माधवराव सिंधिया को 2 करोड़ चाँदी के सिक्कों के साथ अन्य बहुमूल्य रत्न मिले। इस खजाने के मिलने से माधवराव की आर्थिक स्थिति में बहुत वृद्धि हुई।
वर्षो की हताशा और बुरे अनुभवों से शिक्षा लेते हुए सर माधवराव ने यह निर्णय लिया कि वो कभी भी अपने धन को इस तरह गुप्त रूप से नहीं छुपायेंगे। राजा माधवराव ने अपने खजाने को रुपयों में बदला और मुम्बई लाकर उद्योग-जगत की कई बड़ी कंपनियों में निवेश किया।
गंगाजली के खजाने की खोज और टाटा समूह में निवेश | Real Treasure story of India
सन 1920 में उस समय टाटा-ग्रुप की आर्थिक हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी और कम्पनी संघर्ष के दौर से गुजर रही थी। टाटा समूह के प्रबंधकों ने राजा माधवराव से आर्थिक सहायता का निवेदन किया, जिसके जवाब में राजा माधवराव खुशी से सहायता करने को राज़ी हो गये।
इससे माधवराव और सिंधिया राजघराना टाटा-समूह के सबसे बड़े निवेशकर्ताओं में से एक बने और टाटा कंपनी के एक बड़े हिस्से के मालिक भी। टाटा-ग्रुप में निवेश इस कहानी के सच्ची होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
ऐसा माना जाता है कि आज भी ग्वालियर के किले में गंगाजली खज़ाना छुपा हुआ है। संभवतः राजा के उत्तराधिकारियों ने भी कुछ तहखानो की खोज की हो और शायद सफल भी हुए हों। परन्तु इस घटना के अतिरिक्त किसी अन्य घटना का कभी खुलासा नहीं हुआ। सिंधिया परिवार के गंगाजली खजाने का रहस्य आज भी बरक़रार है।
वैसे तो पुराने किलों और स्थानों के बारे में ऐसी कई कहानियाँ है। जैसे कि यह माना जाता है चन्द्रगुप्त का गुप्त खज़ाना भी बिहार में कही छुपा हुआ है, जिसे चाणक्य ने अपने बुद्धि-कौशल का उपयोग करते हुए और बौनों की सहायता से कई स्थानों पर गुप्त तहखाने बनवाकर छुपाया था।
सिंधिया राजघराना के गुप्त खजाने की कहानी प्रामाणिक होने की वजह से सच्ची जान पड़ती है. बाकी खजानों के बारे में क्या ही कहा जा सकता है. है कि नहीं ?
सिंधिया परिवार की वंशावली | Jayajirao Scindia Family Tree
माधवराव सिंधिया काग्रेस पार्टी के एक लोकप्रिय नेता थे. माधवराव के पिता जीवाजीराव सिंधिया ग्वालियर के महाराजा थे. माधवराव सिंधिया के दादा जी का नाम सर माधवराव सिंधिया था।
चूंकि माधवराव मराठों की सिंधिया राजवंश के उत्तराधिकारी थे, अतः सन 1961 में उन्हें ग्वालियर का राजा बनाया गया. परन्तु सन 1971 में संविधान के 26वीं संशोधन के कारण उनकी राजशाही खत्म कर दी गयी और उनके सभी विशेषाधिकारो को हटा दिया गया.
अपनी माता राजमाता विजयराजे सिंधिया की राजनीतिक विरासत को अपनाते हुए माधवराव भी 1971 के चुनाव में खड़े हुए और लोकसभा के लिए चयनित हुए. माधवराव 9 बार बिना हारे लगातार लोकसभा के लिए चयनित हुए और कई विभागों में मंत्री भी बनाये गए.
30 सितम्बर 2001 को मैनपुरी जिला (उत्तर प्रदेश) के पास एक हवाई जहाज दुर्घटना में 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ. उनके पुत्र ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया वर्तमान में भारतीय राजनीति के एक सक्रिय नेता हैं.
सिंधिया क्या होते हैं, सिंधिया परिवार की जाति | Scindia Caste
सिंधिया एक हिन्दू मराठा राजघराना है, जिसने ग्वालियर स्टेट पर 18 से 19वीं सदी तक राज किया. सिंधिया परिवार कुनबी जाति के राजसी मराठा है. Scindia शब्द मराठी के शिंदे का अंग्रेजी अपभ्रंश रूप है. 1947 में आजादी मिलने के बाद सिंधिया राजवंश के सदस्य राजनीति में आ गये.
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अति सुंदर
Very nice
To God very nice
Sir jeeee