नील विद्रोह कब और कहाँ हुआ था | Neel Vidroh ka karan

Neel Vidroh : नील की खेती से नील विद्रोह ( Indigo Revolt) की शुरुआत हुई थी। नील आंदोलन भारतीय किसानों द्वारा अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध किया गया आंदोलन था। नील को कई तरह की Dye (कपड़े रंगने का काम) में प्रयोग किया जाता था। नील की खेती के लिए भारत एक अच्छी जगह थी और यहाँ नील की फसल उगाई जाती थी। 

नील विद्रोह का कारण व नील विद्रोह कहाँ, कैसे, कब हुआ | Indigo Rebellion or Indigo Revolt

यूरोपीय देशों और विश्व में नील की काफी खपत थी। अंग्रेजों ने इस व्यवसायिक संभावना में मोटे मुनाफे का अवसर देखा। अंग्रेज भारत में किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाते फिर उस नील को नाम मात्र के मूल्य पर खरीद के विदेशों में बेचकर बड़ा लाभ कमाते थे।

अंगेज बागान मालिक और जमींदार दोनों ही किसानों के शोषण में शामिल थे। हालात यह थे कि किसान खुद खाने के लिए चावल की खेती भी नहीं कर पाते थे। बंगाल सहित पूरे भारत में किसानों के साथ यही हाल था। ब्रिटिश सरकार किसानों को नील के बाजार भाव का 2.5% मूल्य देती थी। 

बंगाल में नदिया जिले के किसानो ने 1859-60 में नील विद्रोह का आंदोलन शुरू करके नील की खेती करना बंद कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाई। नील विद्रोह की शुरुआत बंगाल के नदिया जिले के गोविन्दपुर और चौगाछा गाँव में बिष्णुशरण विश्वास और दिगम्बर विश्वास नामक किसान नेताओं ने किया था। 

नदिया जिले के बाद तेजी से यह विद्रोह बंगाल के अन्य जिलों मुर्शिदाबाद, बीरभूम, बर्दवान, खुलना, मालदा, नरैल आदि जिलों में फैला। इस अहिंसावादी विद्रोह (Non-violent revolt) में सभी धर्म और जाति के किसानों ने सहयोग किया।  

शोषण से पीड़ित किसानों की इस एकता का यह परिणाम हुआ कि 1860 तक पूरे बंगाल में नील की खेती और उत्पादन बंद हो गया। आखिरकार 1860 में ब्रिटिश सरकार ने नील आयोग का गठन किया।

नील आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अधिसूचना निकाली गई कि किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और विवादों को कानूनी तरीके से निपटाया जाएगा। 

नील क्रांति (Indigo Revolt) पर बंगाली लेखक ‘दीनबन्धु मित्र’ ने नील दर्पण नामक एक नाटक लिखा, जिसमें उन्होंने अंग्रेजो की ज्यादतियां और शोषित किसानो का बड़ा ही मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया.

ये नाटक इतना प्रभावकारी था कि देखने वाली जनता, जुल्म करते हुए अंग्रेज का रोल निभाने वाले कलाकार को पकड़ के मारने लगी. बंगाल के किसानो द्वारा किया गया यह नील विद्रोह आन्दोलन (Indigo Revolt) इतिहास के सबसे बड़े किसानी आन्दोलनों में एक माना जाता है.

Q: नील विद्रोह कब हुआ था ?

A: नील विद्रोह 1859-1860 के दौरान बंगाल में शुरू हुआ था।

Q: भारत में नील की खेती की शुरुआत कब, कहाँ हुई ?

A: सन 1777 में एक फ्रेंच व्यक्ति Louis Bonnaud ने बंगाल में नील की खेती गोलपाड़ा व तालदंगा में शुरू करवाई थी।

नील के बारे में जानकारी | Indigo Plant Crop

नील यानि इन्डिगो के पौधे का वैज्ञानिक नाम Indigofera tinctoria है। नील पौधे की पत्तियाँ देखने में तो हरे रंग की होती हैं लेकिन उनसे नीला रंग बनता है। यह जंगली पौधा अफ्रीका और एशिया में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। भारत में नील की खेती तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, उत्तराखंड में होती है।

आजकल बाजार में मिलने वाले ज्यादातर लिक्विड नील केमिकल कलर्स हैं लेकिन 19वीं सदी में ज्यादातर नील पौधे से ही नील बनाई जाती थी।

पुराने जमाने में नील के पौधे को तोड़कर पानी में भिगोकर सड़ने के लिए (Fermentation) के लिए रख दिया जाता था, जिससे पौधे में मौजूद Glycoside indican तत्व Indigotin में बदल जाता था। Indigotin से नील पाउडर बनता था।

आजकल कपड़ों में नील (Indigo) डालने का प्रचलन लगभग ख़त्म सा हो गया है. पुराने ज़माने में सफ़ेद कपड़ो में तो नील (Indigo powder) डालना ही होता था.

गौर करने पे याद आता है कि पहले लोग सफ़ेद कपडे ज्यादा पहनते भी थे. कुरते पायजामे, धोती, शर्ट, अंगोछे, रुमाल ज्यादातर सफ़ेद ही होते थे. कठोर जल (Hard water) में कपड़े जल्दी ही पीले पड़ने लगते थे, इसलिए नील जरूरी सामग्री थी.

पुराने समय में लोग नदी के किनारे की मिटटी जिसे रेह कहते थे, उसे लगाकर कपडे धोते थे और नील डाल के चमका लेते थे. चूने से होने वाली पुताई में भी नील प्रयोग होता है जोकि मन को शांत करने वाला एक बढ़िया सा आसमानी रंग देता है. ये हल्का नीला रंग (Indigo blue color) ठंडक सी देता महसूस होता है.

indigo plant in hindi
नील का पौधा

आजकल बहुत तरह के केमिकल पेंट्स प्रयोग होने लगा है फिर भी कई लोग नील-चूने की पुताई (Indigo paint) करवाते है. भारत जैसे गर्म देश के हिसाब से ये केमिकल पेंट्स अच्छे नहीं माने जाते है क्यूकी इन रंगों में प्रयोग होने वाले केमिकल कमरे की हवा में केमिकल के अंश फैलाते रहते है.

नयी रिसर्च में पता चला है कि ये चूने वाली पुताई हमारे स्वास्थ्य के लिए ज्यादा अच्छी होती है.

– जैसे जैसे प्रगति हो रही है अब लोग जान-समझ रहे है कि जैविक खेती (Organic farming) मतलब केमिकल वाली खाद के बिना होने वाली खेती और घर के निर्माण में जैविक तरीका अपनाना सेहत के साथ मन और मष्तिष्क पर बड़ा ही पॉजिटिव प्रभाव डालता है.

Jodhpur blue houses
फोटो स्रोत : जोधपुर (राजस्थान) के नील चूने से पुते मकान

अतः हम सबको प्रयास करना चाहिए कि ये तरीके अपना के हम भी अपने आस पास को प्रदूषण रहित बनाएं.

नील या नीला (Indigo color) एक शांत रंग है. ये रंग तनाव दूर करता है. देखा जाये तो नीले आसमान के रूप में ये हमारे द्वारा सबसे ज्यादा देखे जाने वाला रंग है.

हमारा जीवन यादों और बातों का एक तानाबाना सा है. सुबह से ही इतनी बातें नील (Indigo in hindi) को लेकर मन में आने लगी कि बिना लिखे मन नहीं माना. आपकी भी कई यादें ताज़ा हुई होंगी. जरुर बताइयेगा.

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indigo plant uses in hindi
फोटो स्रोत : नील के पौधे से नील बनाना

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1 thought on “नील विद्रोह कब और कहाँ हुआ था | Neel Vidroh ka karan”

  1. इस लेख के द्वारा मुझे बहुत ही रोचक एवं इनफॉर्मेटिव जनकारी प्राप्त हुई।इस लेख को मैने शेयर भी करना पसंद किया। इस प्रकार के रोचक लेख के लिए धन्यवाद।

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