योग: कर्मसु कौशलम् का अर्थ समझें | Yogah karmasu kaushalam meaning

योग: कर्मसु कौशलम् meaning in hindi : संस्कृत उक्ति ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ भगवतगीता अध्याय 2 के श्लोक संख्या 50 से ली गई है। नीचे इसे शब्दार्थ और व्याख्या से समझने का प्रयास किया गया है। 

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् II

Buddhiyukto jahatiha ubhe sukritadushkrite l
Tasmadyogaya yujyaswa yogah karmasu kaushalam II

श्लोक का अर्थ : समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इसलिए तू समत्वरूप योग में लग जा; यह समत्वरूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंधन से छूटने का उपाय है।

Yogah Karmasu Kaushalam meaning

पहले तो देखें योग: कर्मसु कौशलम् का शब्दार्थ क्या निकलता है ? इसका अर्थ हुआ – योग से ही कर्मों में कुशलता है। यानी कर्मयोग के अनुसार कर्म करने में कुशल व्यक्ति कर्मबंधनों से मुक्त हो जाता है। कर्म में कुशलता का अर्थ है, ऐसी मानसिक स्थिति में काम करना कि व्यक्ति कर्म एकदम अच्छे तरीके से करे और फल की चिंता में पड़कर खुद को व्यग्र न करे।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस इस विषय पर एक बड़ी सुंदर बात कहा करते थे – एक स्त्री जो खाना बहुत अच्छा बनाती है, वो ध्यान में भी बहुत उन्नति कर सकती है। इसका कारण यह है कि अगर भोजन मन लगाकर न बनाया जाए तो खाने का स्वाद अच्छा नहीं होगा। अगर कोई बेमन से खाना बनाए तो क्या होता है ? एक दिन नमक डालना भूल गए तो दूसरे दिन 2 बार नमक डाल दिया। ऐसा आदमी अगर दूध भी उबालेगा तो हफ्ते में 2-3 बार दूध उफनकर बह जाएगा। ओह ! मैं तो असावधान था।

मनुष्य जीवन में कर्म सर्वोपरि है। जब तक जीवन है कर्म करना ही पड़ता है, कर्म न करने से कष्ट और क्लेश उत्पन्न होता है। कुछ कर्म इच्छा से होते हैं और कुछ कर्म स्वाभाविक होते हैं। ये मनुष्य का स्वभाव है कि कर्म करने से पहले फल की चिंता होने लगती है। इच्छानुसार फल मिले तो प्रसन्नता होती है और न मिले तो दुख होता है। फल की चिंता करने से मनुष्य कुशलता से कर्म नहीं कर सकता है।

अगर आपको मालूम है कि कोई काम आपको करना ही चाहिए तो आपको इच्छा-अनिच्छा से ऊपर उठकर उसे करना चाहिए। चाहे उसके फल में आपका स्वार्थ सिद्ध हो या न हो।

कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता, हर काम को सही से करना आपके अंदर अच्छे गुणों को विकसित करता है। जब मनुष्य के अंदर मेहनत और लगन का भाव आदत बन जाता है तब सुख और सफलता उसे मिलने लगती है।

Yogah Karmasu Kaushalam meaning | Excellence in Action is Yoga 

जब दिमाग सतर्क होता है और आप वर्तमान में रहते हो तो, इस स्थिति को योग कहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से जब हमारा शरीर काम में लगा होता है तो मन भविष्य की कल्पनायें कर रहा होता है, नहीं तो बीते समय की घटनाओं का फ्लैशबैक चला रहा होता है। आज और अभी में जीना, शक्ति को केंद्रित करके कर्म करना ही योग है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को हर कर्म फल की आसक्ति से रहित होकर करना चाहिए। इस मानसिकता से किया गया हर कर्म मनुष्य की निपुणता बढ़ाएगा और विपरीत परिस्थितियों में भी उसका मनोबल बना रहेगा। व्यक्ति को लक्ष्य निर्धारित करके पूर्ण मनोयोग से कर्म करने में योग करना चाहिए यानि जुट जाना चाहिए।

कर्म तो मनुष्य के बस में हैं, लेकिन फल की प्राप्ति बहुत से कारकों पर निर्भर करती है। भविष्य की हर घटना का सही अनुमान तो कोई नहीं लगा सकता लेकिन कुशलता से कर्म करने पर व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं है।

हर कर्म मनुष्य को ज्ञान और अनुभव देता है, जिससे अगर एक बार व्यक्ति को किसी कारणवश सफलता न भी मिल पाए तो अगली बार सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

गीता कहती है कि स्वार्थ से किया गया काम आपको माया से बांधता है लेकिन कर्म को ईश्वर का आदेश समझकर उनकी प्रसन्नता के लिए करते हैं, तो आपका मन शांत, स्थिर होने लगेगा और माया-मोह से उपजने वाले दिमागी क्लेश नहीं होंगे।

काम में कष्ट होंगे तो भी आप बेचैन नहीं होंगे क्योंकि अब तो आप भगवान के लिए काम कर रहे हैं, उनका प्रेम पाने के लिए कर रहे हैं। आप काम भी अच्छे से करेंगे और फल की टेंशन नहीं होगी क्योंकि आपको तो बस पूरे मन से काम करना है। Yogah Karmasu Kaushalam के अर्थ से जुड़े प्रश्न, विचार नीचे कमेन्ट करें। 

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12 thoughts on “योग: कर्मसु कौशलम् का अर्थ समझें | Yogah karmasu kaushalam meaning”

    • भाईसाब मैंने बिल्कुल साफ लिखा है कि ‘योग से ही कर्मों में कुशलता है’ शब्दार्थ है। भावार्थ तो आगे बताया गया है, आप फिर से पढिए। श्लोक के अर्थ से समस्या है तो गीताप्रेस से संपर्क करें, ये उन्ही की भगवतगीता से लिया गया है। आप खुद भी गीता की पुस्तक देख सकते हैं। वैसे गीताप्रेस की प्रामाणिकता को भारत में कोई चैलेंज नहीं कर सकता। योग को योगा (व्यायाम) किस लाइन में लिखा गया है ? बताने का कष्ट करें। निश्चित रूप से आपने पूरा लेख नहीं पढ़ा है, या समझ नहीं पाए हैं।

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      • जी बिल्कुल, गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रेषित स्वामी रामसुखदास जी द्वारा लिखित साधक संजीवनी में भी “कर्मो ने योग ही कुशलता है” लिखा है, और इसका यही मतलब भी उचित है। अगर इसका मतलब कर्मों में कुशलता ही योग है यह लिया जाता तो जो कुशलता से चोरी करता है वह भी योगी होगा जो कि गलत है इसलिए स्वामी रामसुखदास जी ने साधक संजीवनी में यह स्पष्ट लिखा है की कर्मों में योग ही कुशलता है।
        हालांकि इसका जो अर्थ इंग्लिश में लिखा गया है वह पूर्णता सही नहीं है। आश्चर्य की बात है कि इंग्लिश में यही मोटो IAS का भी है। excellence in action कर्मों में कुशलता को दर्शाता है जो कि गलत है, जिसको अभी चोरी के उदाहरण से समझाया था।

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        • एक ही अर्थ को हर व्यक्ति अपने बुद्धि, विवेक की क्षमता के अनुसार अलग-अलग समझता है। भगवान कृष्ण की रासलीला उनके और गोपियों के प्रेम का परिचायक है लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं जो रासलीला शब्द को गलत कार्य का उदाहरण देने के लिए करते हैं।

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  1. Karmoon me kushalta lana hi yog hai….is ka matalab hai na ki yog se karmoon me kushalta aati hai… matlab hai iska….

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  2. योग: कर्मसु कौशलम्
    RAS mains 2018 m pucha gaya tha.
    Thank you for this important information and nice explanation.

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  3. योग: कर्मसु कौशलम् का अर्थ है : –

    कर्मों को कुशलता से करना ही योग है

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  4. कर्मों में योग ही कुशलता है यही इसका स्वामी रामसुखदास जी महाराज के गीता ग्रंथ में बताया गया है।

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  5. बहुत ही सुन्दर उत्तर दिया है
    यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है

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