भारतीय रेलवे का वडाला एक्सपेरिमेंट :
Indian Railway का वडाला एक्सपेरिमेंट एक ऐसा मनोवैज्ञानिक प्रयोग था, जिससे Railway Track पार करते समय होने वाले एक्सीडेंट की संख्या में भारी कमी आई. मुंबई की वडाला नामक व्यस्त इलाके में इस प्रयोग को करके देखा गया, जहाँ Railway track Experiment बहुत ज्यादा होते थे.
– लोगों के मन-मस्तिष्क पर गजब का असर करने वाले इस एक्सपेरिमेंट को मुंबई की Final Mile नामक कंपनी ने रेलवे के साथ मिलकर किया. रेलवे ट्रैक पार करने की जल्दी में लोग ट्रेन के सामने आ जाते हैं. लोग ऐसा गलत निर्णय क्यों ले लेते हैं, इसके पीछे 3 मुख्य मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं. इन्ही कारणों का Creative solution निकालकर रेलवे ने इसका समाधान किया.
1- परिणाम की कल्पना न होना : रेलवे ट्रैक पार करते समय हमारे सामने दो निर्णय होते हैं, रुको या भागो. इसी उहापोह में फंसकर लोग गलती कर बैठते हैं. इस भागादौड़ी में हम गलत निर्णय के परिणाम की कल्पना नहीं कर पाते.
image source : Boston
इसका उपाय रेलवे ने कुछ ऐसे पोस्टर लगाकर किया, जिसमें एक आदमी ट्रेन के नीचे आ रहा है. ये पोस्टर ऐसी जगह लगाये गये, जहाँ सबसे ज्यादा एक्सीडेंट होते थे. पोस्टर लगाने का परिणाम ये हुआ कि वहाँ से गुजरते समय लोगों की नजर उस पोस्टर पर पड़ती और लोग सम्भावित एक्सीडेंट की कल्पना करके सचेत होने लगे.
2- Leibowitz Hypothesis : आप मानेंगे नहीं, पर इस हाइपोथिसिस ने सिद्ध किया गया है कि मनुष्यों को तेजी से आती छोटी चीज़ से ज्यादा भय लगता है, बजाय उसी तेजी से आती बड़ी वस्तु से. यह मनुष्य के क्रमिक विकास का परिणाम है, क्योंकि आदिकाल में हाथी, ऊँट के बजाय शेर, चीते से इंसानों को ज्यादा हानि थी.
लोग तेजी से आती ट्रेन की गति का सही आकलन नहीं कर पाते और ट्रेन की चपेट में आ जाते हैं. इसका समाधान यह निकाला गया कि हर थोड़ी दूर पर रेलवे ट्रैक्स को पीले रंग से कलर कर दिया गया. इन पीले ट्रैक ने एक बोल्ड मार्कर की तरह काम किया. इससे लोगों को अंदाज़ा मिलने लगा कि इन्हें पार करती हुई ट्रेन कितनी तेजी से उनके पास आ जाएगी.
3- रेलवे हॉर्न न सुन पाना : हम इन्सान एक समय में एक ही ध्वनि पर सही फोकस कर पाते हैं. अगर एक साथ कई ध्वनियाँ सुनाई दे रहीं हों तो हमारा दिमाग बहुत सी आवाज़ों को अनसुना सा कर देता है. कई बार ऐसा हो जाता है कि ट्रेन के हॉर्न की आवाज़ आसपास के शोरगुल में मिल जाती है और हमारा ध्यान हॉर्न की आवाज़ पर नहीं जाता.
इसके उपाय के लिए सम्भावित एक्सीडेंट वाले क्रासिंग प्वाइंट से 120 मीटर पहले Whistle board लगाये गये. रेलवे ड्राईवर को निर्देश दिया गया कि इन Whistle board से गुजरते समय वो एक लम्बे लगातार हॉर्न के बजाय थोड़े थोड़े अन्तराल पर दो बार हॉर्न बजायें.
इस तरह हॉर्न बजाने से लोगों का ध्यान हॉर्न की तरफ जाता है. चलती ट्रेन से थोड़े अन्तराल पर आती दो आवाज़ों में आवाज की तीव्रता का अंतर महसूस किया जा सकता है. इससे लोग ये अंदाजा लगाने में सक्षम होते हैं कि ट्रेन अब नजदीक आ गई है.
उपर्युक्त 3 मनोवैज्ञानिक उपायों के प्रभाव से वडाला क्षेत्र में एक्सीडेंट की संख्या में 70-75 % की कमी हुई और एक्सीडेंट से रेलवे के होने वाले नुक्सान में कमी आई. Railway track crossing accident रोकने की योजना के लिए Indian Railway ने 50 करोड़ रुपये निर्धारित किये थे, जबकि इन उपायों को अपनाने से ये काम कुछ हज़ार रुपयों में ही हो गया.
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