भारतीय सेना के महान Chief Field Marshal सैम मानेकशॉ बहादुरी और हिम्मत की मिसाल थे। सैम एक चतुर रणनीतिकार थे और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुई 13 दिन की यादगार लड़ाई में वो एक हीरो बनकर उभरे थे। बेहतरीन सेनानायक होने के साथ ही वो अपने खास अंदाज और हाजिरजवाबी के लिए भी बहुत मशहूर थे।
1) सैम मानेकशॉ की लाल मोटरसाइकिल –
सैम मानेकशॉ के जीवन की इस Story की पहली घटना सन 1947 में घटी. सैम मानेकशॉ और याह्या खान दोनों ही British Army में कार्यरत थे. ये वही याह्या खान थे जोकि आगे चलकर पाकिस्तान के आर्मी चीफ और तीसरे राष्ट्रपति बने.
उस दिनों सैम मानेकशॉ के पास एक खुबसूरत लाल रंग की जेम्स मोटरसाइकिल हुआ करती थी. याह्या खान सैम मानेकशॉ की इस बाइक के दीवाने थे.
जब भारत पाकिस्तान विभाजन का समय आया तो याह्या खान पाकिस्तान जाने की तैयारी करने लगे. पाकिस्तान जाने से पहले याह्या खान ने सैम मानेकशॉ की बाइक 1,000 रूपये में खरीदने का प्रस्ताव रखा.
सैम मानेकशॉ ने अपनी Bike उन्हें बेच दी, बदले में याह्या खान ने कहा कि वो पाकिस्तान जाकर बाइक की पूरी रकम भेज देंगे. याह्या खान अपने साथ बाइक तो ले गए लेकिन उन्होंने अपना वायदा पूरा नहीं किया. याह्या खान ने बाइक की कीमत नहीं भेजी.
– इस घटना की दूसरी कड़ी 24 साल बाद सन 1971 में घटी.
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध होना निश्चित हो गया। किस्मत की बात ये कि उस समय सैम मानेकशॉ भारत के और याह्या खान पाकिस्तान के आर्मी चीफ थे और युद्ध में अपने-अपने देश का नेतृत्व कर रहे थे.
1971 का घमासान युद्ध हुआ. इस Indo-Pak युद्ध में भारत ने जीत हासिल की और पाकिस्तान को बड़ी हार और भारी हानि का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में ही पूर्वी पाकिस्तान का विघटन हुआ.
सैम मानेकशॉ ने इस युद्ध के बात जो यादगार बात बोली, वो ये है – याह्या ने मेरी Bike के 1000 रुपये तो मुझे कभी नहीं दिए, लेकिन अब उसने अपना आधा देश देकर हिसाब पूरा कर दिया है।
2) जब सैम मानेकशॉ को 7 गोलियां लगीं | Story of Sam Manekshaw
बर्मा युद्ध के दौरान सैम मानेकशॉ पर जापानी इम्पीरीअल आर्मी ने लाइट मशीन गन से गोलियों की झड़ी लगा दी। सैम को 7 गोलियां पेट, फेफड़े, लिवर, किडनी में लगी। सैम की हालत गंभीर थी। उनके इन्फन्ट्री कमांडर ‘डेविड कोवन’ को लगा कि सैम जिंदा नहीं बचेंगे।
डेविड कोवन ने उस लड़ाई में सैम की बहादुरी देखी थी, वे सैम से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने उसी समय अपना ‘मिलिट्री क्रॉस रिबन’ मेडल अपनी शर्ट से निकालकर सैम की शर्ट में लगा दिया और कहा – मृत व्यक्ति को ‘मिलिट्री क्रॉस’ मेडल नहीं दिया जा सकता।
इसके बाद सैम मानेकशॉ के अर्दली शेर सिंह उन्हे युद्धक्षेत्र से निकालकर एक डॉक्टर के पास इलाज के लिए ले गए। उनके जिंदा बचने की संभावना इतनी कम थी कि डॉक्टर ने कहा उनका इलाज करना समय व्यर्थ करना है।
लेकिन शेर सिंह ने डॉक्टर से बार-बार कहा कि कुछ भी हो उन्हे सैम का इलाज करना ही होगा। इसी बीच सैम को होश आया तो डॉक्टर ने उनसे पूछा कि ये सब कैसे हुआ।
सैम ने जवाब दिया कि – उन्हे एक गधे ने लात मार दी।
मौत के मुंह में अटके सैम के मुंह से ऐसा मजेदार जवाब सुनकर डॉक्टर उनकी जिंदादिली और हाजिरजवाबी से इतना प्रभावित हुआ कि वो फौरन सैम के इलाज में जुट गया. उसने सैम के शरीर से गोलियां निकालीं।
सैम की आंतों का भी काफी हिस्सा काटना पड़ा लेकिन सैम बच गए और कुछ महीनों बाद फिर से आर्मी जॉइन कर ली। शेर दिल जवान ऐसे ही नहीं मरा करते। सैम ने पूरा जीवन आन-बान-शान से जिया और महान सेनानायक सैम मानेकशॉ का निधन 94 साल की उम्र में 27 जून 2008 को तमिलनाडु में हुआ।
Sam Manekshaw भारतीय सेना और जनता के लिए हमेशा अविस्मरणीय हीरो रहेंगे. हम सभी भारतीय उनकी देशभक्ति और बहादुरी को सलाम करते हैं. सैम मानेकशॉ की बायोग्राफी की कहानी को दोस्तों के साथ व्हाट्सप्प, फ़ेसबुक पर शेयर जरूर करें जिससे कई लोग इसे पढ़ सकें।
ये भी पढ़ें >
युद्ध की 5 अनोखी कहानियाँ जब चालाकी से दुश्मनों को हराया गया
नाथूसिंह राठौर ने क्या सवाल पूछ लिया कि नेहरु चुप रह गए
रिचर्ड फ्रांसिस बर्टन की साहसिक यात्राओं के 5 गजब किस्से पढ़ें
रूस देश के बारे में 15 गजब जानकारी जो कम ही लोग जानते हैं