इंसान को गुस्सा क्यों आता है, कैसे आता है | Gussa kyun aata hai
गुस्सा कहाँ से आता है, Gussa कैसे आता है इसे समझने के लिए एक संत की कहानी का उदाहरण पढ़िए. आपको बड़ी आसानी से जवाब मिल जायेगा.
एक संत जब भी ध्यान लगाने बैठते, कोई न कोई व्यवधान आ ही जाता. कभी कोई शोर होने लगता तो कभी किसी की बातचीत की आवाजें. संत महाराज चिड़चिड़ा उठते, गुस्सा से भर जाते.
एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वो अपने मठ से दूर कहीं ध्यान लगायेंगे. पहले उन्होंने सोचा घने जंगल में चलूँ. घनघोर जंगल में जाकर वह ध्यान लगाने बैठ गए.
बड़ी शांति थी वहाँ पर. संत जी ध्यान की गहराईयों में उतरने ही वाले थे कि कोई पंछी बड़े जोर से आवाज़ करते हुए गुजरा. उसकी आवाज़ सुनकर बाकी पक्षी और जानवर भी कोलाहल करने लगे.
संत जी के गुस्से का ठिकाना नहीं. बड़बड़ाते हुए संत महाराज उठ खड़े हुए और वहां से से भी चल दिए.
उन्होंने सोचा क्यों न पानी में चलें, वहाँ तो कोई व्यवधान न मिलेगा. ये विचारकर संत महाराज एक विशाल झील के पास पहुंचे. झील का पानी शांत और स्वच्छ था, बड़ा ही मनोरम लगता था.
आशापूर्वक संत जी ने एक नाव खोली और खेते हुए झील के मध्य जा पहुंचे. वाकई यहाँ कोई शोर न सुनाई देता था, संत जी प्रसन्न हुए. वो नाव में ही आख बंदकर ध्यान लगा कर जम गये.
आधे घंटे हुए थे कि अचानक संत जी की नाव में एक ठोकर लगी. बंद आँखों के अंदर ही संत जी गुस्से से भरने लगे. उन्होंने मन में सोचा कौन लापरवाह नाविक मेरी ध्यान साधना भंग करने आ टपका.
वो आंख खोलते ही उसपर बरसते, मगर जब उन्होंने आंखे खोली तो वो अवाक रह गये.
वो एक खाली नाव थी जो उनकी संत की नाव से आ टकराई थी. सम्भवतः घाट पर कोई नाव खुली रह गयी थी, जो हवा के बहाव से धीरे-धीरे बहते हुए उनकी नाव के पास आ गयी थी.
उस क्षण संत जी को यह बात समझ आ गयी कि Anger तो उनके भीतर ही भरा है, बस कोई बाहरी उत्प्रेरक मिलते ही वह बाहर आ जाता है.
इस घटना के बाद जब भी उस संत को कोई गुस्सा दिलाता या नाराज करता, वो स्वयं को याद दिलाते – ये आदमी भी एक खाली नाव ही है, गुस्सा तो मेरे भीतर ही भरा है.
गुस्सा मनोवैज्ञानिक दृष्टि से एक रोचक प्रतिक्रिया है. इसके कई पहलू हैं. उपरोक्त कहानी में आपने इसका एक उदाहरण देखा. इसी तरह गुस्से की एक खास बात यह है कि हमारा गुस्सा वहीँ फटता है, जहाँ हमे कोई भय नहीं होता.
अब इस छोटी सी कहानी से कुछ बड़ी बातें समझें :-
Office में एक Boss अपने जूनियर ऑफिसर को किसी गलती के लिए डांटता है. Junior Officer अपना गुस्सा बॉस पर तो निकाल नहीं सकता, उसकी भड़ास उसके जूनियर कर्मचारी पर निकलती है.
यह कर्मचारी भी मन ही मन गुस्से से भर जाता है पर करे क्या, उसके नीचे काम करने वाला कोई वर्कर है ही नहीं.
गुस्से से चिढ़े हुए ये महाशय शाम को अपने घर पहुचंते हैं. घर में बीवी की किसी छोटी सी बात पर इनका भरा गुस्सा फट पड़ता है और वे उसे खरी-खोटी सुना देते हैं.
बीवी बेचारी सुनकर रह जाती है, लेकिन गुस्से का ये Transfer अब उसपर हावी है. गुस्से से भरी हुई वह घर के काम करने लगती है, तभी उसका 4 साल का बेटा प्रेमवश उससे आ लिपटता है.
वैसे तो स्त्री अपने बालक से बहुत प्रेम करती है, मगर चूँकि वो अभी गुस्से में हैं अतः वो उसे झिड़ककर दूर कर देती है. बालक अवाक रह जाता है, रोष से पैर पटकते हुए वो अपने कमरे जाता है और अपना बाल रोष खिलौनों को फेंककर, तोड़कर दिखाता है.
देखा आपने गुस्से का Chain-reaction !
इस उदाहरण में हरेक ने अपना गुस्सा वहां निकाला जहाँ उसे किसी प्रतिक्रिया (Reaction) का भय नहीं होता.
कई बार होता है कि हम अपना Anger पाले हुए, कहीं का गुस्सा कहीं और निकलाते हैं. इसलिए गुस्से को समझिये, ये चेन रिएक्शन तोड़िए, विवेक से काम लीजिये.
गुस्सा है तो उस एनर्जी से कोई पॉजिटिव काम करिये. गुस्सा ठंडा होगा और शांति भी मिलेगी. हर समस्या का समाधान है और अगर आपको लगता है कि समाधान नहीं है तो फिर गुस्सा करके क्यों खुद को जला रहे हैं ?
जिस बात पर आप लाल-पीले होकर फुफकारने लगते हैं, उसे कितने ही लोग शांति से हैंडल कर लेते हैं या अपनी रचनात्मक सोच से हल कर लेते हैं. गुस्से के मूल को समझिये और उसका इलाज करिए.
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