अपने गुरुओं की पूजा करने के लिए गुरु मंत्र का जाप (Guru Mantra in hindi) से गुरुजी का स्मरण करें और उनका आशीर्वाद, कृपा प्राप्त करें। हिन्दू धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना गया है। गुरु पूर्णिमा के दिन यदि आपके कोई गुरु हैं तो उनके समक्ष जाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। अन्यथा अपने मन में ही नीचे दिए गए गुरु मंत्र का जाप करते हुए गुरु का स्मरण, चिंतन और वंदना करनी चाहिए।
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गुरु मंत्र क्या है | What is Guru Mantra in Hindi
जब कोई गुरु अपने शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति के लिए कोई मंत्र गुप्त रूप से जाप के लिए देता है तो उस मंत्र को गुरु मंत्र कहा जाता है। गुरु मंत्र कोई शब्द, इष्ट देवता या ईश्वर का कोई नाम, मंत्र, बीज मंत्र, श्लोक भी हो सकता है।
ये जरूरी नहीं है कि गुरु मंत्र कोई ऐसा मंत्र हो, जो बहुत गुप्त या विशिष्ट मंत्र हो। गुरु मंत्र ऐसा मंत्र भी हो सकता है जिसे ज्यादातर लोग जानते हों, उदाहरण के लिए : गायत्री मंत्र, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, ओम नमो भगवते वासुदेवाय, राम नाम का जप, सीताराम, राधे-राधे आदि।
हिन्दू धर्म के मानने वाले ये बात तो जानते ही हैं कि मंत्रों में ईश्वरीय शक्ति की ऊर्जा छुपी होती है। इसलिए किसी मंत्र का जप करने से वह मंत्र अपना प्रभाव दिखाता है लेकिन अगर वही मंत्र किसी गुरु से मिले तो जप के परिणाम अद्भुत होते हैं।
गुरु मंत्र की बड़ी भारी महिमा इसलिए है क्योंकि गुरु मंत्र में गुरु परंपरा के गुरुओं का तेज और प्रभाव होता है। इसलिए अगर गुरु द्वारा बताए गए नियम के अनुसार गुरु मंत्र का नियमपूर्वक जाप किया जाए तो दैवीय आशीर्वाद व आध्यात्मिक प्रगति कम समय में, आसानी से मिलने लगती है।
गुरु मंत्र दीक्षा के धार्मिक अनुष्ठान में गुरु शिष्य के कान में गुरु मंत्र कहता है जिसे कोई अन्य न सुन पाए। गुरु मंत्र दीक्षा संस्कार में शिष्य को मंत्र जप के नियम बताए जाते हैं और शिष्य गुरु को कुछ दक्षिणा भी देता है।
गुरु मंत्र देने वाले गुरु पर भी शिष्य की प्रगति की जिम्मेदारी होती है, इसलिए गुरु मंत्र हर किसी को नहीं दिया जा सकता। अगर कोई अन्य व्यक्ति गुरु मंत्र जान भी जाए और उसका जप करने लगे तो उसे वह लाभ नहीं मिलेगा जोकि गुरु मुख से मंत्र दीक्षा होने पर मिलता है।
1) गुरु मंत्र हिंदी | Guru mantra in Hindi text – GuruMantra meaning in hindi
अपने गुरु जी के प्रति सम्मान व्यक्त करने और उनकी अर्चना करने के लिए नीचे दिए गए गुरु मंत्र का पाठ करें।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थ – गुरु ही मनुष्य के जीवन का ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान कल्याण, बुद्धि-विचार का विकास और अनुशासन, मार्गदर्शन से जीवन को सफल बनाने का पथ दिखाता है। इसलिए गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु हैं और गुरु ही महेश अर्थात भगवान शिव हैं। साक्षात परब्रह्म परमात्मा ही हमारे उद्धार के लिए गुरु रूप में प्रकट होते हैं और ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं। अतः मैं ऐसे महान सद्गुरु को प्रणाम करता हूँ।
2) गुरु गायत्री मंत्र | Guru Gayatri mantra in hindi
ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
3) नमामि महादेवं देवदेवं, भजामि भक्तोदय भास्करम तं | ध्यायामि भूतेश्वर पाद्पंकजम, जपामि शिष्योद्धर नाम रूपं
4) ॐ त्वमा वह वहै वद वै गुरौर्चन घरै सह प्रियन्हर्शेतु I
अर्थ – हे गुरुदेव ! आप सर्वज्ञ हैं, हम इश्वर को नहीं पहचानते, उन्हें नहीं देखा है, पर आपको देखा है और आपके द्वारा ही उस प्रभु के दर्शन सहेज, संभव हैं | हम अपने ह्रदय को समर्पित कर आपका अर्चन पूजन करके पूर्णता प्राप्त करने आकांक्षी हैं।

गुरु वंदना मंत्र | Powerful Guru Vandana Mantra
5) ॐ शिवरूपाय महत् गुरुदेवाय नमः
6) ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
7) ॐ गुं गुरुभ्यो नम: (Om Gum Gurubhyo Namah)
8) ॐ जेत्रे नम:
9) ॐ गुरुभ्यों नम:।
10) ॐ धीवराय नम:
11) ॐ गुणिने नम:
A: गुरु पूर्णिमा का पर्व हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
Ans: इसका अर्थ है ‘मैं अपने महान गुरुजी को झुककर नमस्कार करता हूँ’ या ‘दिव्य गुरुजी को नमस्कार है’। in English it means ‘I bow down and salute to my great Guru’.
गुरु मंत्र के फायदे | Guruji Mantra Jaap benefits in hindi
गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान से ही हमारे अज्ञान का नाश होता है और हमारे जीवन को दिशा मिलती है। गुरु 2 प्रकार के होते हैं। एक जो हमें पढ़ाई-शिक्षा के माध्यम से ज्ञान का बोध कराते हैं और दूसरे वे गुरु जो हमें इस माया रूपी संसार के अज्ञान से मुक्त कराते हैं। इस अतिरिक्त भी हर वो व्यक्ति, जीव, जड़-चेतन वस्तु हमारा गुरु ही है जो हमें किसी न किसी रूप में कोई कल्याणकारी शिक्षा देता है। आइए इसे इस कहानी से समझते हैं।
एक बार आदि शंकराचार्य नदी से स्नान करके वापस लौट रहे थे तो उनके मार्ग में एक चांडाल आ गया। शंकराचार्य जी ने उसे अपने रास्ते से हट जाने को कहा क्योंकि यदि चांडाल से उनका शरीर स्पर्श हुआ तो वे अपवित्र हो जायेंगे। चांडाल ने उनसे कहा – आप किसे हटने के लिए कह रहे हैं ? मेरे शरीर को या मेरी आत्मा को ? आप मेरे छूने से क्यों अपवित्र हो जाएंगे ? क्योंकि मेरा चांडाल शरीर और आपका ब्राह्मण शरीर दोनों ही पंचतत्व से बना हुआ है। आपके और मेरे अंदर निवास करने वाली आत्मा उसी परब्रह्म परमात्मा का अंश है जोकि संसार के हर जीव में विद्यमान है। हमारी आत्माओं में कोई भिन्नता नहीं है। जब हम एक ही तत्व और आत्मन से बने है तो अप मुझे हटने के लिए कैसे कह सकते हैं। चांडाल के वचन सुनकर शंकराचार्य को ज्ञान हुआ कि इस सामान्य चांडाल ने कितनी उच्च ज्ञानपूर्ण बात कही है। शंकराचार्य ने चांडाल को गुरु कह कर उसे साष्टांग प्रणाम किया और उस ज्ञान पर आधारित ‘मनीष पंचकम’ स्तोत्र की रचना की।
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गुरु की महिमा का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। स्वयं भगवान ने जब अवतार लिया तो उन्होंने भी अपने गुरुओं के चरण में बैठकर ज्ञान अर्जन किया। ईश्वर जो खुद सभी ज्ञान का स्रोत हैं उन्होंने भी गुरु का आदर-सम्मान करके मनुष्य के लिए एक आदर्श स्थापित किया। भगवान ने यह लीला हमें समझाने के लिए की जिससे हम गुरु की महत्ता समझे और अपने जीवन के उद्धार के लिए सद्गुरु का आश्रय लेने का महत्व समझ सकें।
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