आनंदमयी माँ भारत के उन महानतम संतों में एक हैं जिन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत श्रेष्ठ माना गया है। भारत के कई दिव्य संतों जैसे स्वामी शिवानंद, स्वामी योगनन्द परमहंस आदि ने भी माँ आनंदमयी की उन्नत आध्यात्मिक अवस्था की प्रशंसा की है। आनंदमयी माँ के भक्तों ने अपने जीवन में माँ की कृपा से कइयों चमत्कारों, कष्ट निवारण जैसे अद्भुत अनुभव किये हैं।
आनंदमयी माँ के सुविचार कथन | Anandamayi Ma quotes
आनंदमयी माँ का जन्म 30 अप्रैल 1896 को बांग्लादेश के ब्राह्मणबरिया जिले में हुआ था। आनंदमयी माँ का असली नाम निर्मला सुंदरी था, परंतु उनके सदा ईश्वर आनंद में परिपूर्ण व्यक्तित्व और सबसे माँ के समान स्नेहवत व्यवहार की वजह से भक्त लोग उन्हें ‘आनंदमयी माँ’ कहने लगे। 27 अगस्त 1982 को 86 साल की उम्र में आनंदमयी माँ ने देहरादून, उत्तराखंड में समाधि लेकर अपनी जीवनलीला पूर्ण की।
1) केवल वे ही जानते हैं कि वो किसके समक्ष किस रूप में प्रकट होंगे। किस रास्ते से और किस तरीके से वो किसी खास व्यक्ति को अपनी ओर तीव्र शक्ति से आकर्षित करते हैं, मनुष्य की समझ से बाहर की बात है। निःसंदेह अलग-अलग यात्रियों के मार्ग अलग हैं।
2) असली यथार्थ विचार और शब्द के परे है। जो कुछ शब्दों में कहा जा सकता है केवल वही कहा गया है। लेकिन वास्तव में जिसे भाषा में परिभाषित नहीं किया जा सकता है, वही वो (परमात्मा) हैं।
3) जब भी संभव हो सके, पवित्र नाम का प्रवाह चालू रखो (ईश्वर नाम जप)। उनका नाम जपना उनकी उपस्थिति के समान है। अगर तुम उस सर्वोच्च मित्र के साथी बनो, वो अपना सच्चा रूप तुमको प्रकट कर देंगे।
4) कितने जीवन निराशा में चले गए, समय बीतता चला गया, इस अंतहीन आने और जाने में। पता करो तुम कौन हो !
5) कौन है जो प्यार करता है ? और कौन है जो कष्ट भुगतता है ? केवल वही अकेले खुद खेल रहा है, उसके अलावा कौन मौजूद है ? व्यक्ति कष्ट पाता है क्योंकि वो द्वैत को अनुभव करता है। ये द्वैत है जो शोक और दुख का कारण है। उस एक को खोजो जो सबमें और सब जगह व्याप्त है, और इससे दुख और दर्द का अंत हो जाएगा।
6) जब तुम्हारे आंसुओं की बाढ़ से, आंतरिक और बाह्य जुड़कर एक हो जाएंगे, तुम उनको पा लोगे जिसे तुमने इतनी वेदना से मांगा है, जो समीपतम से समीप है, जो जीवन की हर सांस में है, जो सबके हृदय के मूल में है।
7) जब दिमाग सांसारिक इच्छाओं से भरा हुआ होता है, तो उनका स्वभाव है दिमाग को भ्रमित करना। दिमाग को बाहरी चीजों से अलग करके अंदर की तरफ मोड़ दो।
8) तुम जिस भी दिशा में अपनी नजर घुमाओगे उस एक अभाज्य अविनाशी का प्राकट्य पाओगे। फिर भी, उसकी मौजूदगी का पता करना आसान नहीं है, क्योंकि वो सबमें समाया हुआ है।
9) साधु-संत वृक्षों के जैसे होते हैं। न तो वे किसी को बुलाते हैं, न ही वे किसी को भगाते हैं। वे उन सबको शरण देते हैं जो भी आता है, चाहे वो एक पुरुष, स्त्री, बच्चा या एक जानवर ही हो। अगर तुम एक पेड़ के नीचे बैठोगे, वो मौसम से तुम्हारी रक्षा करता है, तेज धूप से और बारिश से भी, और तुमको फल और फूल भी देता है। चाहे एक मनुष्य उनका आनंद ले या चिड़िया उसका स्वाद ले, पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता है; उसकी पैदावार सबके लिए है जो भी आता है और लेता है।
10) पता करो: ‘मैं कौन हूँ’ और तुम उत्तर खोज लोगे। एक पेड़ को देखो: एक बीज विशाल पेड़ उग आता है; उसमें से ढेरों बीज आ जाते हैं, उसमें से हर एक फिर एक पेड़ बन जाता है। कोई भी 2 फल एक जैसे नहीं होते हैं। फिर भी वो एक ही जीवन पेड़ के हर कण में धड़कता है। ऐसे ही वो एक आत्मन हर जगह है।
Ma Anandamayi teachings-
11) या तो (ईश्वर से) अलगाव के भावना की भक्ति से पिघलो, या ज्ञान की अग्नि से जला दो- क्या है जो पिघलता है या जलता है ? केवल वही जिसके स्वभाव में जल सकना या पिघल सकना है; यानि वो विचार कि किसी अन्य का अस्तित्व तुमसे अलग है। इसके बाद क्या होगा ? तुम अपने आप को जान जाओगे।
12) चाहे तुम क्राइस्ट की पूजा करो या कृष्ण, काली, अल्लाह की, तुम असल में उसी एक प्रकाश की पूजा कर रहे हो, जो तुममें भी है, क्योंकि वो हर वस्तु में व्याप्त है।
13) बिना कारण या वजह के उनकी कृपा, उनका अनुग्रह हर क्षण समक्ष बरस रहा है।
14) कृपा हर समय वर्षा की तरह बरस रही है, प्रत्येक को थोड़ी बहुत आध्यात्मिक साधना करनी चाहिए जिससे कि वो (कृपा) ग्रहण करने लायक बन सके। जो भी थोड़ी बहुत शक्ति तुम्हारे पास है – उसे लगाओ ! पवित्र ग्रंथों को पढ़ने में, उनका नाम लेने में, जप करने में – उतना करो जितना करने की शक्ति है, करते जाओ। उसके बाद, जो कुछ करना है वो करेंगे। सिर्फ कौर मुंह में डालने से पेट नहीं भर जाता है। (उसे चबाना, निगलना भी पड़ता है)
15) उनके लिए रोना कभी व्यर्थ नहीं जाता है। जब तक तुम्हें प्रतिक्रिया न मिले, प्रार्थना करते रहना।
16) जब कोई सारे प्रयासों के बावजूद ट्रेन पकड़ने में असफल होता है, क्या इससे ये साफ नहीं होता कि सारी हलचल किसकी तरफ से निर्देशित है ? तुम्हारे साथ कहीं भी, जो कुछ भी, किसी भी समय होता है, सब कुछ उनके द्वारा निश्चित किया गया है….उनकी व्यवस्था एकदम उत्तम होती है।
17) एकमात्र ईश्वर की तरफ मुड़ने से ही मनुष्य के लिए शांति पाने की आशा है।
18) ‘क्या तुम केवल एक साँस के भी स्वामी हो ? उन्होंने जिस छोटी सी सीमा तक तुम्हें यह आभास होने दिया है कि तुमको कर्म करने की आजादी है, यदि तुम समझो तो इस आजादी से उनकी प्राप्ति की आकांक्षा करो, यह तुम्हारे खुद के लिए अच्छा होगा।
19) हमेशा ये बात दिमाग में रखो : सबकुछ भगवान के हाथ में है, और तुम उनकी इच्छानुसार उपयोग किये जाने वाले एक उपकरण हो। ‘सबकुछ उनका है’ इस बात का महत्व समझने की कोशिश करो और तुम तुरंत ही सभी बंधनों से मुक्त अनुभव करोगे। तुम्हारे इस आत्मसमर्पण का क्या परिणाम होगा ? कोई भी अनजान या पराया नहीं लगेगा, सभी तुम्हारे अपने लगेंगे।
20) तुम्हें कष्ट मिलते हैं, ये याद दिलाने के लिए कि अपने विचारों को उसकी तरफ मोड़ो जो सच्चा है – वो ईश्वर जो तुम्हें सांत्वना देगा।
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sources : https://www.anandamayi.org/, https://en.wikipedia.org/wiki/Anandamayi_Ma