गीता किसने लिखी और कब लिखी : 5000 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान ही गीता के श्लोक हैं। प्रमाणों के अनुसार दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में ‘महाभारत ग्रंथ’ की रचना हुई थी। स्वामी विवेकानंद जी ने लिखा है कि 18वीं शताब्दी से पहले गीता का जन-सामान्य में बहुत प्रचार नहीं था। जब आदिगुरु श्री शंकराचार्य जी ने भगवदगीता के ऊपर व्याख्या ‘शंकर भाष्य‘ लिखा, उसके बाद से पुनः समाज में भगवदगीता के प्रति नई जागरूकता और प्रचार-प्रसार हुआ।
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भगवत गीता किसने लिखी, रचयिता कौन हैं | Bhagwat Geeta ke rachiyata kaun hai
भगवदगीता के लेखक महर्षि वेदव्यास हैं, जिनका पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास था। वेदव्यास जी ने महाभारत के श्लोक बोले थे, जिसे सुनकर भगवान श्री गणेश ने लिखा था। महाभारत के भीष्म पर्व नामक खंड में कौरव-पांडव युद्ध का वर्णन है। भीष्म पर्व में लिखित, कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध से पहले कृष्ण-अर्जुन संवाद के रूप में जो श्लोक बोले गए हैं, उन्हीं 700 श्लोक का संकलन ‘श्री मदभगवदगीता‘ कही जाती है।
महाभारत युद्ध के लिए जब कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव-पांडव की सेना आमने-सामने खड़ी हुईं तो अर्जुन कौरवों के दल में अपने गुरु, बंधु, मित्र, परिचित और संबंधियों आदि को देखकर मोहग्रस्त और भ्रमित होकर किंकर्तव्यविमूढ़ (Bewildered) हो जाते हैं।
तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के श्लोक के माध्यम से उचित धर्म-कर्म-कर्तव्य के सत्य ज्ञान का उपदेश देते हैं। गीता के ज्ञान से अर्जुन के सभी संदेह और मनोविकार नष्ट हो गये और वो पूर्ण उत्साह और सम्यक बुद्धि (Right mindset) से युक्त होकर युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।
गीता के अध्याय और उनके नाम
गीता में 18 अध्याय हैं। हर अध्याय का अलग-अलग नाम है। ये नाम इस प्रकार हैं :
1. पहला अध्याय – अर्जुनविषाद योग
2. दूसरा अध्याय – सांख्ययोग
3. तीसरा अध्याय – कर्मयोग
4. चौथा अध्याय – ज्ञान-कर्म-सन्यास योग
5. पाँचवाँ अध्याय – कर्म सन्यास योग
6. छठवाँ अध्याय – आत्मसंयम योग
7. सातवाँ अध्याय – ज्ञान-विज्ञान योग
8. आठवाँ अध्याय – अक्षरब्रह्म योग
9. नवां अध्याय – राजगुह्य योग
10. दसवां अध्याय – विभूति योग
11. ग्यारहवाँ अध्याय – विश्वरूपदर्शन योग
12. बारहवाँ अध्याय – भक्तियोग
13. तेरहवाँ अध्याय – क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग
14. चौदहवाँ अध्याय – गुणत्रय विभाग योग
15. पंद्रहवाँ अध्याय – पुरुषोत्तम योग
16. सोलहवां अध्याय – दैवासुर सम्पद्विभाग योग
17. सत्रहवाँ अध्याय – श्रद्धात्रय विभाग योग
18. अठारहवाँ अध्याय – मोक्ष सन्यास योग
गीता नाम का अर्थ क्या है | Meaning of Gita
गीता नाम ‘गीत’ शब्द से बना है, जोकि एक तरह की पद्य रचना है। विद्वानों के अनुसार गीता नाम का अर्थ – दैवीय गान, स्वर्गीय गीत या ईश्वर के वचन माना गया है। गीता के अन्य नाम ईश्वर गीता, अनंत गीता, हरि गीता, व्यास गीता हैं।
श्रीमदभगवत शब्द की व्याख्या जानें | Meaning of Shrimadbhagwat
गीता को सम्मानपूर्वक लिए जाने का नाम श्री मदभगवतगीता है।
श्रीमद शब्द किसी को उच्च श्रेणी का आदर देने के लिए भी नाम के पहले लगाया जाता है, जैसे कि कोई धार्मिक ग्रंथ, तीर्थ, गुरु या आचार्य के नाम के साथ लगाया जाता है। श्रीमद शब्द का अर्थ है जो लक्ष्मी और ऐश्वर्य संपन्न है अथवा मंगलकारी और ज्ञान का सागर है।
भागवत शब्द में पंचमहाभूतों का संकेत है. भागवत= भ.अ.ग.व्.त.
भ का अभिप्राय भूमि से,
अ का अग्नि से,
ग का गगन (आकाश) से,
व का वायु से और
त का तोय अर्थात जल से है.
गीता में क्या लिखा है –
वैसे तो गीता संस्कृत भाषा में लिखी है और ये ग्रंथ हिन्दू धर्म के अंतर्गत आता है लेकिन उसके उपदेश में कोई भी धार्मिक धर्मांधता या दृष्टिकोण नहीं है।
गीता में तो मुख्यतः मनुष्य जीवन के सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर है। गीता दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्मग्रंथ है जोकि मानव के स्तर की बातें, जीवन के मूलभूत प्रश्नों और कर्म के सिद्धांत के बारे में बड़े सुंदरता और सूक्ष्मता से बताता है।
गीता में अर्जुन एक मनुष्य के रूप में अपनी शंकायें, प्रश्न पूछते हैं और भगवान श्रीकृष्ण उनके प्रश्नों का उत्तर देते हैं व संदेह-निवारण करते हैं। अर्जुन जो प्रश्न करते हैं, वे हर ऐसे व्यक्ति के मन में आते हैं जोकि कभी न कभी या अक्सर ही जीवन को समझने का प्रयास करता है।
अर्जुन और कृष्ण के ये प्रश्नोत्तर कई विषयों जैसे कर्म, कर्मफल, धर्म, जन्म-मृत्यु, सत्य-असत्य, आत्मा-परमात्मा, कर्तव्य, भय-शोक, सही मनोवृत्ति, जीवन जीने का सही मार्ग आदि पर आधारित है।
यह संसार कर्म प्रधान है यानि हर जीवित प्राणी को कर्म करना ही होता है। कर्म को लेकर हर व्यक्ति के मन में हमेशा बहुत से प्रश्नों का जाल बना रहता है। जैसे कि हम कौन सा कर्म करें ? कर्मफल क्या है ? हमारे द्वारा किया गया हर कर्म जीवन को कैसे दिशा देता है ? कर्म का महत्व क्या है ? आदि।
कोई भी कर्म करने से पहले उसका विचार दिमाग में आता है। मनुष्य एक सोच-विचार करने वाला जीव है और किसी एक ही कार्य को करने से पहले हर व्यक्ति की मनोदशा अलग-अलग हो सकती है।
कर्म के परिणाम की चिंता या किसी कर्म को करने में मोह, शंका का भाव आना मनुष्य का स्वभाव है लेकिन इस सोच के साथ कई समस्यायें हैं, जिनका समाधान गीता में बताया गया है। गीता इस बारे में भी बताती है कि कर्म करने के लिए हमारी मनोवृत्ति कैसी हो जिससे कि हम उचित कर्म करते हुए भी कर्मबंधन में न पड़ें।
गीता में कर्मयोग का सिद्धांत बहुत प्रसिद्ध है जोकि हमें बताता है कि संसार से विरक्त होकर वैराग्य प्राप्त करना ही शांति और मुक्ति का एकमात्र उपाय नहीं है। सही तरीके और सही विचार से अगर कर्म किया जाए तो कर्म भी हमें आसक्ति के बजाय विरक्ति और ज्ञान की प्राप्ति करा सकता है।
गीता कहती है कि सही सोच से उचित कर्म यानि निष्काम कर्म करके एक गृहस्थ संसार में कर्तव्यों को करते हुए भी एक विरक्त साधु के समान कर्मबंधन से मुक्त होकर सद्गति प्राप्त कर सकता है।
अगर कोई आपसे पूछे कि गीता के मुख्य उपदेश क्या है तो आप हमारे इस लेख को पढ़कर बड़ी आसानी से किसी को भी गीता के मुख्य उपदेश समझा सकते हैं : गीता के 15 मुख्य उपदेश क्या हैं
गीता एक ऐसा ग्रंथ है जोकि मानव जाति के लिए हमेशा प्रासंगिक था और हमेशा रहेगा। आधुनिक काल में भगवतगीता का प्रचार दुनिया भर में हो रहा है और हर देश-काल, समाज का व्यक्ति गीता ज्ञान के प्रकाश से जीवन को सुंदर, सफल बनाकर परम शांति पा सकता है।
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श्रीमद्भागवत गीता से संबंधित आपकी सभी जानकारियां बहुत अच्छी लगी।
Geeta Bhagavad Ek mahan garnth hai bhagavad Geeta is Garet …….
महानुभाव मुझे मेरे एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा है.. प्रश्न है.. जो गीता के जो उपदेश हैं वो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहे हैं लेकिन उनको लिखने वाला कौन है क्युकी जिसने भी लिखे हैं मतलब वेदव्यास जी ने उनको भगवान कृष्ण और अर्जुन के संवाद जी जानकारी कैसे हुई जब कि वो तो वहाँ पर उपस्थित ही नहीं थे कृपा करके आप मेरी शंका दूर करें
‘महाभारत’ में इस प्रकार का उल्लेख आया है कि वेदव्यास ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफ़ा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली थी, परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि इस महाकाव्य के ज्ञान को सामान्य जन साधारण तक कैसे पहुँचाया जाये, क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन कार्य था कि कोई इसे बिना किसी त्रुटि के वैसा ही लिख दे, जैसा कि वे बोलते जाएँ। इसलिए ब्रह्मा के कहने पर व्यास भगवान गणेश के पास पहुँचे।
Mr. Ved Vyas ke Paas itni divya Shakti bhi thi ki vo vahan par present huey bina Sab kuch Jaan Gaye..
AUR Bhagvanon se bhi Direct Baat thi : ki ek writer ke roop mein ek bhagvaan ko appoint kiya gya..
“BUT in Mr. Ved Vyas ko Khud ko likhna bhi nahi aata tha..”
STRANGE NA…
Likhna ata tha but he didn’t had speed, read story again.
‘महाभारत’ में इस प्रकार का उल्लेख आया है कि वेदव्यास ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफ़ा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली थी, परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि इस महाकाव्य के ज्ञान को सामान्य जन साधारण तक कैसे पहुँचाया जाये, क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन कार्य था कि कोई इसे बिना किसी त्रुटि के वैसा ही लिख दे, जैसा कि वे बोलते जाएँ। इसलिए ब्रह्मा के कहने पर व्यास भगवान गणेश के पास पहुँचे।
Divya dristy k dawra.kiyunki bedvayas KO bi divya Cristy thi our wake Alva sanjay KO.bi
नमस्कार सर जी अपने जो जानकारी भगवत गीता के बारे में दी है वह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा, कृपया इसी तरह के पोस्ट लिखकर के लोगो का मार्ग दर्शन करे। – भगवन आपको खुश रखे।
भागवत गीता के बारें जानकारी बहुत अच्छी लगी । बहुत बहुत धन्यवाद॥एसी और जानकारी भागवत गीता के बारे दें॥
बहुत ही महत्तवपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई ।
Jai sri ram
Bahut hi achi jankari prapt hui h
Jai shree ram
हमारे धर्म ग्रन्थ ये बताते हे की हमें मैं को त्याग देना चाहिए ताकि हम परमात्मा में विलीन हो सके , तो फिर कृष्णा गीता में ऐसा क्यों कहते हे ही मैं ही सुब कुछ हु ओर मेरे सिवा कुछ भी नहीं ???