दिलवाड़ा मंदिर कहाँ है | Dilwara Mandir in hindi : माउंट आबू के पास में स्थित दिलवाड़ा के जैन मन्दिर प्राचीन भारत की अद्भुत निर्माण कला का आश्चर्यजनक उदाहरण है। क्योंकि इस मन्दिर में फोटो खींचने की मनाही है, इसीलिए बहुत से लोग इस अत्यंत सुंदर मन्दिर से अनजान है। वैसे Internet पर दिलवाड़ा मन्दिर की फ़ोटोज़ हैं जिसे देखकर आप इसकी दैवीय सुन्दरता का अंदाजा लगा सकते हैं या खुद जाकर भी वहाँ की अद्भुत वास्तु कला निहार सकते हैं।
दिलवाड़ा का जैन मंदिर कहाँ स्थित है | Dilwada ka Jain Mandir
1) दिलवाड़ा जैन मन्दिर राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू के पास देलवाड़ा गाँव में स्थित है। ये मंदिर माउंट आबू शहर के मध्य से 2.5-3 किलोमीटर दूर बने हुए हैं। मंदिर जाने के लिए बस और टैक्सी की सुविधा आसानी से उपलब्ध हैं।
2) इन मन्दिर की खूबसूरती के सामने ताजमहल की खूबसूरती भी फीकी पड़ती है. ताजमहल का निर्माण तो 16वीं शताब्दी में हुआ था. जबकि दिलवाड़ा मन्दिर का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था.
3) दिलवाड़ा मन्दिर भी संगमरमर का बना हुआ है और जो लाजवाब कलाकारी और अत्यंत सुंदर मूर्तियाँ यहाँ है, उसके सामने ताजमहल कुछ नहीं है।
4) यहाँ कुल 5 मन्दिर हैं. ये खूबसूरत मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं.
- विमल वसही मन्दिर : प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव
- लुन वसही मन्दिर : 22वें जैन तीर्थंकर नेमीनाथ
- पीतलहर मन्दिर : प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव
- पार्श्वनाथ मन्दिर : 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ
- महावीर स्वामी मंदिर : अन्तिम जैन तीर्थंकर महावीर
दिलवाड़ा जैन मन्दिर का इतिहास और बनाने का कारण | Dilwara Jain temple history
5) सोलंकी राजा भीमदेव ने चन्द्रावती रियासत में भड़के विद्रोह को काबू करने के लिए अपने महामंत्री विमलशाह को भेजा था. विद्रोह शांत करने में हुए रक्तपात से विमलशाह को बहुत ग्लानि का अनुभव हुआ.
उन्होंने एक जैन साधक से इस पाप से मुक्ति और पश्चाताप का उपाय पूंछा. जैन साधक ने कहा – पाप से पूर्णतया मुक्ति तो आसान नहीं, परन्तु मंदिर बनवाने से तुम कुछ पुण्य अवश्य अर्जित कर सकते हो. इसी प्रेरणा से विमलशाह ने मंदिर निर्माण प्रारंभ किया.
दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण किसने करवाया | Delvada Jain Mandir
6) दिलवाड़ा मन्दिर 5 मन्दिरों का समूह है, जिसमें हर मंदिर को बनवाले वाले लोग अलग-अलग हैं।
- सबसे पुराना विमल वासाही मंदिर 1031 में बना हुआ है। इस मन्दिर को सोलंकी राजा भीमदेव के महामंत्री विमलशाह ने बनवाया था.
- लुन वसही मन्दिर को 1230 में दो पोरवाल भाइयों वास्तुपाल और तेजपाल द्वारा बनवाया गया था.
- पीतलहर मन्दिर को 1468-69 में अहमदबाद के मंत्री भीमशाह ने बनवाया था.
- पार्श्वनाथ मन्दिर को 1458-59 के दौरान मांडलिक और उनके परिवार ने बनवाया था.
- महावीर स्वामी मंदिर को 1582 में बनवाया गया. यह सबसे छोटा मन्दिर है लेकिन इसकी बनावट अद्भुत है.
7) ये मन्दिर बनाने में 1500 शिल्पकार और 1200 श्रमिकों की कड़ी मेहनत लगी है.
8) दिलवाड़ा मन्दिर बनने में 14 साल लगे और करीब 18 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
9) पीतलहर मन्दिर में ऋषभदेव की पंचधातु से बनी मूर्ति का वजन 4,000 किलोग्राम है.
10) विमल वसही मन्दिर में लगी आदिनाथ मूर्ति की आँखें असली हीरे की बनी हुई हैं और गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है।
11) ऐसा मन्दिर शायद ही आपने देखा हो. बाहर से सामान्य लगने वाले इस मन्दिर की भीतरी बनावट अद्भुत है. महीन पच्चीकारी और उत्कृष्ट मूर्तिकला का उदाहरण इस मन्दिर में देखने को मिलता है.
12) दीवारों और छत पर बारीक नक्काशी बेहद सफाई से बनाई गयी है. मूर्तियों पर भाव एकदम सजीव लगते हैं।
13) पॉलिशिंग इतनी चमकदार कि सैकड़ों वर्ष पुरानी होने के बाद भी नई लगती है. संगमरमर पर इतनी फाइन कारीगरी है कि लगता है जैसे वो पत्थर नहीं मोम हो. कोई भी आधुनिक मन्दिर Dilwara Temple की स्थापत्य कला का मुकाबला नहीं कर सकता.
तो आप Dilwara Jain Temple देखने कब जा रहे हैं ? अगर आप दिलवाड़ा मन्दिर घूम आये हैं तो अपने अनुभव नीचे कमेंट करें. दोस्तों दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में जानकारी को व्हाट्सप्प, फ़ेसबुक पर शेयर जरूर करें जिससे कई लोग हमारे महान अतीत के बारे में जान सकें।
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