वह शक्ति हमें दो दयानिधे के लेखक कौन हैं | Vah Shakti Hamen do Dayanidhe PDF

प्रार्थना वह शक्ति हमें दो दयानिधे PDF | Wah Shakti Hame Do Dayanidhe pdf

वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें !

पर-सेवा पर-उपकार में हम, निज-जीवन सफल बना जावें !

हम दीन-दुखी निबलों-विकलों के सेवक बन संताप हरें !

जो हैं अटके, भूले-भटके, उनको तारें खुद तर जावें !

छल, दंभ-द्वेष, पाखंड-झूठ, अन्याय से निशिदिन दूर रहें !

जीवन हो शुद्ध सरल अपना, शुचि प्रेम-सुधा रस बरसावें !

निज आन-मान, मर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे !

जिस देश-जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें !

लगभग सभी उत्तर-भारतीय स्कूलों में सुबह-सुबह सुर-बेसुर प्रार्थना गाते हुए बच्चों में जो एक समानता होती है, वो है ये प्रार्थना वह शक्ति हमें दो दयानिधे !!

आश्चर्य की बात ये कि इतनी ज्यादा लोकप्रिय प्रार्थना/कविता के लेखक के बारे में लोगों को पता नहीं है। इन्टरनेट पर भी इस कविता के लेखक के बारे में मतभेद पाया गया है। 

कई वेबसाइट्स पर लिखा है कि इसके लेखक मुरारीलाल शर्मा बालबंधु थे परंतु कई विद्वानों ने कहा है कि ये कविता श्री परशुराम पान्डे जी द्वारा लिखित है। परशुराम पान्डे जी मध्यप्रदेश के रीवा जिले की गुढ तहसील में द्वारी ग्राम के निवासी थे। 

पं रामसागर शास्त्री, डा कृष्णचन्द्र वर्मा, डा नागेंद्र सिंह ‘कमलेश,  श्री रविरंजन सिंह जैसे लेखक जिन्होंने विंध्य क्षेत्र के साहित्य का अध्ययन किया है, इस बात की पुष्टि प्रमाण सहित की है। अधिक जानकारी के लिए नीचे रमाशंकर शर्मा जी का कमेन्ट देखें। 

मुझे आज भी यह प्रार्थना याद है, शायद आपको भी हो. इसके अलावा हमारे School course में जो सरकारी किताबें पढाई जाती थीं, उनके Back cover पर भी यह कविता प्रिंट होती थी।

कविता वह शक्ति हमें दो दयानिधे की इस जानकारी को Whatsapp, Facebook पर शेयर जरुर करे, जिससे अन्य लोग भी ये जानकारी पढ़ सकें

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23 thoughts on “वह शक्ति हमें दो दयानिधे के लेखक कौन हैं | Vah Shakti Hamen do Dayanidhe PDF”

      • आज के घोर अनुशासन हीन सामाजिक ताने बाने के बिध्स्वंसक स्वच्छंदतावाद को देख कर आप कह सकते है

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  1. निज आन ,बान नहीं निज आन , मान है ।
    कृपया सुधार करें

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  2. गलत जानकारी है
    ‘ वह शक्ति हमें दो दयानिधे ‘ प्रार्थना ग्राम द्वारी तहसील गुढ जिला रीवा मध्यप्रदेश के श्री परशुराम पान्डे जी की लिखी है , इसका स्पष्ट उल्लेख वयोवृद्ध पं रामसागर शास्त्री जीने अपने ग्रन्थ ” विन्ध्य दर्शन ” भाग १ के पृष्ठ 380 में किया है । इसमें उन्होंने कवि का संक्षिप्त परिचय ,उनकी रुचि ,शिक्षा , वृत्ति ,प्रवृत्ति उनकी कालावधि तथा उनकी लिखी कुछ अन्य रचनाओं का भी मूल पाठ सहित उल्लेख किया है ।
    इसके अतिरिक्त डा कृष्णचन्द्र वर्मा जिन्होंने तत्कालीन और विन्ध्य प्रदेश काल के साहित्य का शोधपूर्ण अनुशीलन , संपादन और प्रकाशन का कार्य किया है , उनकी भी यही मान्यता थी । इसका उल्लेख भी उन्होंने किया है । डा वर्मा साहित्य के प्रमाणिक और गंभीर अन्वेषकों में थे । श्री रविरंजन सिंह जीने अपनी पुस्तक “रीवा तब अउर अब ” में एकाधिक बार उनकी इस भूमिका का उल्लेख किया है । (प्रष्ठ 201 )
    डा नागेंद्र सिंह ‘कमलेश ‘जी की मान्यता का जिक्र तो किसी मित्र ने किया ही है । मैंने इन्हीं आधारों पर लगभग एक दशक पूर्व अकबरपुर (कानपुर ) में आयोजित एक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में यह बात प्रसंगवश कही थी , और उस सभा में अनेक प्रतिष्ठित , तथा उम्रदराज साहित्यिकों ने न सिर्फ़ मेरे कथन का प्रतिवाद नहीं किया वल्कि इस महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए मेरा आभार माना , क्यों कि उन्होंने बताया कि यही प्रार्थना उस क्षेत्र में भी गाई जाती थी ,जबकि वे इसके रचयिता से अपरिचित थे ।
    फिर जिन किन्हीं ‘बन्धु ‘ के नाम से यह रचना कही जाने का आग्रह है उनकी साहित्यिक खसूसियत क्या है , उन्होंने कुछ और भी लिखा होगा ,जिसे सामने लाया जाना चाहिए जबकि परुशुराम पान्डे जी की ही यह रचना इसके प्रमाण के लिए श्री राम सागर शास्त्री जी का ऊपर सन्दर्भित ग्रन्थ का चार पृष्ठीय लेख पर्याप्त है ।

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  3. Hmara bachpan esi kavita ko dohrate hue bita swarnim hai es kavita ke sabd or hmara bachpn ko bhi es kavita ne yadgar bna diya

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  4. दी गई जानकारी को पढकर बहुत अच्छा लगा असी ही और जानकारी आप हम तक पहुचाते रहे

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  5. जिस देश जाति में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाएं
    जाति शब्द गलत है जाति पर कौन बलिदान होता है जबकि यह होना चाहिए जिस देश भूमि मे जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाए।

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    • जिस देश राष्ट्र में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जावे सही यह है

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      • माहोदय कवि की कल्पना जो है वही सही जिस देश जाति मे जन्म लिया। जो कवि लिखना चाहता था लिख दिया आप संशोधन करनेवाले कौन हैं।

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      • जो लिख दिया गया है उसमें त्रुटि क्यों निकाल रहे है ,
        आप अगर इतने सक्षम है तो ख़ुद लिखिये महोदय ।।

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    • jaati ka arth manushy jaati se liya ja sakata hai. manavata ka karm karate hue balidan hone ki baat sahi prateet ho rahi hai.

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  6. हमारे विद्यालय में ‘जिस देश जाति में जन्म लिया’ की जगह ‘जिस देश राष्ट्र में जन्म लिया’ बोला जाता था।
    और बलिदान देश राष्ट्र के लिए ही होना चाहिए।

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  7. मूलतः कविता में जिस देश जाति का ही प्रयोग किया गया है। कुछ लोगों को जाति खटकने लगी।उसी जगह राष्ट कर दिया गया है।बचपन में हम लोग प्राइमरी स्कूल में देश जाति के साथ ही प्रार्थना करते थे।

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  8. जिस देश-जाति में जन्म लिया,बलिदान उसी पर हो जावें।
    इस पंक्ति कई कमेंट्स है।देश का अभिप्राय जन्म-भूमि और जाति का अभिप्राय मानव जाति से है कवि मातृ-भूमि और मानवता के लिए बलिदान हो जाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है ।

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    • सही कहा आपने। लोग तो बस किसी भी छोटी सी चीज का मुद्दा बनाना चाहते हैं। किसी बच्चे से पूंछिए जो स्कूल में ये प्रार्थना पढ़ता है, उसे प्रार्थना के शब्दों से कोई मतलब नहीं होता। उसके लिए तो बस सुबह की प्रार्थना एक फॉर्मैलिटी होती है, जिसे वो जल्दी से पूरी करना चाहते हैं।

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  9. इस प्रार्थना के प्रत्येक शब्द दिल को ईश्वर से पहचान करा रहे हैं ।

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