दिल्ली लौह स्तम्भ में जंग क्यों नही लगता | Iron Pillar of Delhi

लौह स्तम्भ की विशेषता | Mehrauli Loh Stambh : लौह स्तम्भ (Iron pillar) के बारे में हम बचपन से पढ़ते आये हैं। इस लौह स्तम्भ की सबसे खास बात यह है कि डेढ़ हजार वर्ष से अधिक पुराना होने के बावजूद भी इसमें जंग (Rust) नहीं लगता। इस अद्भुत लौह स्तम्भ की विशेषता के बारे में जानकारी पढ़िए।

Q: लौह स्तंभ कहाँ पर है

A: लौह स्तम्भ दिल्ली के महरौली में कुतुबमीनार के पास स्थित है।

1) लौह स्तंभ किसने बनवाया था | History of Iron Pillar Delhi

महरौली लौह स्तम्भ 1600 वर्ष से अधिक पुराना है जिसे गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ने बनवाया था। लोहे का यह खंभा दिल्ली के बाहर किसी स्थान पर लगा हुआ था जिसे करीब 1,000 साल पहले दिल्ली लाकर मेहरौली नामक स्थान पर कुतुब मीनार के बगल लगा दिया गया।

2) लौह स्तम्भ 7.21 मीटर ऊँचा है और Loh Stambh का वजन (Weight) 3000 किलो से अधिक है। इस खम्भे का 1 मीटर हिस्सा भूमिगत (underground) है. खम्भे के मूल (base) के पास इसका व्यास 17 इंच और शीर्ष पर व्यास 12 इंच है। 

आयरन पिलर के बीच में बनी बड़ी खरोंच का राज | Mehrauli Loh Stambh

3) इस आयरन पिलर की लंबाई के बीच में एक बड़ी खरोंच (Indentation) दिखाई देती है, करीब 13 फुट के पास। खंभे पर यह निशान बहुत पास से तोप का गोला दागने से बना था। नादिर शाह ने 1739 में दिल्ली आक्रमण के दौरान ऐसा करवाया था। उसे एक इस्लामिक स्थल पर यह हिन्दू प्रतीक पसंद नहीं आया।

तोप के गोले से खंबे पर बस एक खरोंच आई, बाकी खंभा सही-सलामत खड़ा रहा। मगर वो तोप का गोला खंभे से टकराकर छिटक गया और पास ही बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को जाकर ध्वंस कर दिया। इसके बाद लौह स्तंभ को कोई नुकसान नहीं किया गया। 

loh stambh
Delhi ka loh stambh

आइए जानते हैं कि इस Iron Pillar में जंग क्यों नहीं लगता ?

दिल्ली लौह स्तम्भ में जंग क्यों नहीं लगता | Why Iron pillar of delhi is not rusted

4) इसका कारण जानने के लिए IIT कानपुर के प्रोफेसर ने 1998 में एक प्रयोग किया। IIT के प्रोफेसर डॉ. बालासुब्रमण्यम ने आयरन पिलर ऑफ दिल्ली के लोहे की मटेरियल एनालिसिस की। 

इस विश्लेषण में पता चला कि स्तम्भ के लोहे को बनाते समय पिघले हुए कच्चा लोहा (Pig iron) में फ़ास्फ़रोस  (Phosphorous) तत्व मिलाया गया था। इससे आयरन के अणु बांड नहीं बन पाए, जिसकी वजह से जंग लगने की गति हजारों गुना धीमी हो गयी। 

5) लौह स्तंभ में 98% आयरन है और कार्बन की मात्रा बहुत कम है, इतना शुद्ध स्टील बनाना बड़े आश्चर्य की बात है। यह खंभा गरम लोहे के 20-30 किलो के टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया लेकिन खंभे में 1 भी जोड़ नहीं दिखता। 

Delhi iron pillar iron

आश्चर्य की बात यह है कि हमारे पूर्वजों को फ़ास्फ़रोस के जंगरोधी गुण के बारे में कैसे पता चला ?

फ़ास्फ़रोस के जंग रोधी गुणों का पता तो आधुनिक काल में चला है। दुनिया भर में यह माना जाता है कि फ़ास्फ़रोस की खोज सन 1669 में हेन्निंग ब्रांड ने की। मगर यह स्तंभ तो 1600 वर्ष से अधिक पुराना है। मतलब यही हुआ कि पुरातन काल में भारत में धातु-विज्ञान (Metallurgy) का ज्ञान उच्चकोटि का था। 

सिर्फ दिल्ली ही नहीं धार, मांडू, माउंट आबू, कोदाचादरी पहाड़ी पर पाए गये लौह स्तम्भ, पुरानी तोपों में भी यह जंग-प्रतिरोधक (Anti-rust) क्षमता पाई गयी है। 

दिल्ली का यह लौह स्तम्भ (Iron Pillar) हमारे लिए गौरव का प्रतीक है और हमारे महान इतिहास का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस जानकारी को अपने दोस्तों के लिए व्हाट्सप्प, फ़ेसबुक पर शेयर जरूर करें जिससे कई लोग ये जानकारी पढ़ सकें।

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